ग्लानि नहीं!

सिनेमा के दौरान
राष्ट्रगान पर खड़े होने वाले
बूढ़े काका के लिए
अपनी सीट से उठते हैं क्या? 

क्या वो खड़े हो पाते है असहाय के साथ
किसी आंसू बांटती महिला के लिए
अपनी भागती ट्रेन को छोड़ कर? 

क्या वो लालच की आराम कुर्सी का त्याग कर पाते हैं
जब ज़रूरत पड़े
या न भी पड़े तो!
नहीं ग्लानी मत लाना
हो सकता है जवाब न हो हर वक़्त
क्योंकि ऐसा करना ज़रूरी नहीं हैं
जैसे ज़रूरत नहीं
मेरे बॉलीवुड के पुलाव में
देशभक्ति के तके की ।

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