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Showing posts from November, 2013

गीत

अपनी शॉर्ट फ़िल्म के लिए हाल ही यह गाना लिखा है। सुझाव आमंत्रित हैं। चम्पक वन कि तितली उड़ कर बैठी इन पेड़ो पर डाल डाल के स्वाद चखे रंगीन हो गए इसके पर। न न न इस बार नहीं अब ये हाथ न आएँगी एक बहाना सोचेगी और उड़नछू हो जायेगी। कुसुमों  कि बगियन में यह रोज़ देर से आती हैं अखियाँ को थोडा मिचती  है और धीरे से मुस्काती हैं।  चतुर चपल है यह तितली चकमेबाज़ भी खूब है यह सोच सममझ कर - जाल बिझा कर  अपनी चाल चलाती हैं। झाँसी कि रानी बीत गयी ये तो झांसो वाली रानी है!