मई के दिनों में, अंदर गर्म कमरे में - पंखा बंद और बाहर लूँ के थपड़ों से सिकती देह। गर्म लूँ की ठंडी तासीर से। आदत हो गयी थी निवाया दूध छोड़ कर गरमा गर्म चाय की और खौलते पानी से नहाने की। अच्छा लगता था गर्म गर्म गुस्सा और गुस्सा करने वाला गुस्से को घोल के पीया और फिर उलटी भी कर डाली जिससे फिर शरीर गर्म हुआ पसीना आया एक ठन्डे विश्राम के बाद हल्का बुखार आया। सुनसान ठंडेपन से गहमागहमी की गर्मी तोड़ फोड़ की गर्मी इतनी पसंद थी कि गंगा के मुख से बिन नहाये लौट आयी गंगोत्री पहुँच कर भी गर्मी याद आयी। Like Comment Share
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