कार्य करने के लिए हो। बात बोलने के लिए ख्याल आने लिए खाना खाने के लिए किताब पढ़ने के लिए दिन रात दिन रात के लिए पेड़ उगने के लिए फूल खिलने के लिए फल जड़ बूटी छाँव के लिए न भी हो तो भी हो. बस इतना ही।
मई के दिनों में, अंदर गर्म कमरे में - पंखा बंद और बाहर लूँ के थपड़ों से सिकती देह। गर्म लूँ की ठंडी तासीर से। आदत हो गयी थी निवाया दूध छोड़ कर गरमा गर्म चाय की और खौलते पानी से नहाने की। अच्छा लगता था गर्म गर्म गुस्सा और गुस्सा करने वाला गुस्से को घोल के पीया और फिर उलटी भी कर डाली जिससे फिर शरीर गर्म हुआ पसीना आया एक ठन्डे विश्राम के बाद हल्का बुखार आया। सुनसान ठंडेपन से गहमागहमी की गर्मी तोड़ फोड़ की गर्मी इतनी पसंद थी कि गंगा के मुख से बिन नहाये लौट आयी गंगोत्री पहुँच कर भी गर्मी याद आयी। Like Comment Share
9829099896 Is that still your number? On a clear day as I walked on the beach the digits struck me as if lightening. The last time I called was from a PCO booth and you hung up on me. Rings a bell? I am back in that booth today; for no particular reason and I hear that phone on the wall ringing incessantly. Can you please cut the damn phone! cuz I don't wanna hang up on you and I remember well it's your birthday.
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