कार्य करने के लिए हो। बात बोलने के लिए ख्याल आने लिए खाना खाने के लिए किताब पढ़ने के लिए दिन रात दिन रात के लिए पेड़ उगने के लिए फूल खिलने के लिए फल जड़ बूटी छाँव के लिए न भी हो तो भी हो. बस इतना ही।
छोटे कमरे की टांड पर रखा बक्सा कभी कभी खुलता था। दिवाली की सफ़ाई या दादी के श्राद्ध पर खाने पर आयी पंडिताइन के लिए कोई लेन देन की साड़ी या किसी बेशकीमती चीज़ की खोज में जो उसमें नहीं मिलती थी। मिलता था बस कोई कोरा ब्लाउज पीस, छोटी लड़की की उससे छोटी फ्रॉक, आधी बाह का स्वेटर, या एक नया नटंक बटुआ १ रूपए के करारे नोट के साथ। मैं भी कभी बक्सा खोलती हूँ तो मिल जाता है कभी कोई चुटकुला कभी कोई तस्वीर या काम आने वाली कुछ पंक्तियाँ। मगर चाहे जो निकाल लो बक्सों की किस्मत में नहीं लिखा खाली होना वो हमेशा भरे होते हैं। छोटे कमरों की टांड पर - लेटे; बक्से रहते हैं अगली सांस के इंतज़ार में।
हुकुम डेविड लिंच को हिंदी में श्रद्धांजलि देने का आनंद कुछ और होगा। यह सिर्फ़ उनके जाने के बाद समझ आया की श्रद्धांजलि उनके लिए नहीं जो बीत गए बल्कि उनके लिए होती है जो बचे रह जाते हैं। और इसीलिए इस हिंदी में लिखी श्रद्धांजलि से हिंदी प्रदेश में लिंच के जगमग प्रकाश को पहुँचाने का आनंद अनूठा होगा। २ दिन पूर्व लिंच के निधन ने मुझे अवाक् छोड़ दिया है। "जिसका डर था वो हो गया!" इस दिन का आना कली युग के एक नए चक्र की शुरुआत सा महसूस हो रहा है। एक ओर मन कृतज्ञ हुआ जाता है यह जान कर कि वो इस समय तक हमारे साथ बने रहे। मैं इस समय की भावना को जितना हो सके समेटना चाहती हूँ , इसीलिए आज लिखना चाहती हूँ वो सब जो उनके होने और उनके जाने ने मुझे महसूस कराया : १. जो बचा है उसे समेट लो: एक आर्टिस्ट का कर्त्तव्य है एक काल से दूसरे काल तक, एक छोर से दूसरे छोर तक एक पुल बन जाना। सीख , सोच, संभावनाओं के पिटारे को अपनी छाती से लगा कर बचा लेना- सब विपदाओं के बावजूद। यदी आज हम अपने आस पास प्रेरणा का कोई भी स्त्रोत देखते हैं, उसकी याद खुद में समाहित कर लेना - शौक नहीं ज़रूरत है , ताकि प्रेरणा का स्त्रोत ...
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