गीत

अपनी शॉर्ट फ़िल्म के लिए हाल ही यह गाना लिखा है। सुझाव आमंत्रित हैं।


चम्पक वन कि तितली
उड़ कर बैठी इन पेड़ो पर
डाल डाल के स्वाद चखे
रंगीन हो गए इसके पर।

न न न इस बार नहीं
अब ये हाथ न आएँगी
एक बहाना सोचेगी
और उड़नछू हो जायेगी।

कुसुमों  कि बगियन में
यह रोज़ देर से आती हैं
अखियाँ को थोडा मिचती  है
और धीरे से मुस्काती हैं।

 चतुर चपल है यह तितली
चकमेबाज़ भी खूब है यह
सोच सममझ कर - जाल बिझा कर
 अपनी चाल चलाती हैं।

झाँसी कि रानी बीत गयी
ये तो झांसो वाली रानी है!

Comments

  1. गालों मे उसके डिंपल
    है बड़ी इतराती वो.
    चकमे बाज़ नहीं, है बड़ी सयानी
    भंवरे से नाराज़ नहीं
    मन ही मन चाहती है
    दूर करने के नाटक मे
    अपने ही झाषोँ मे फंस जाती है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Hello

Quarantina

हम दो