एक फोटोग्राफ
हर्सिल के गेस्ट हाउस की छत पर
दिसम्बर की भोर में
सहम गया था पानी किनारी से उतरते उतरते
हवा में ही
अंगूर के लच्छे सा
टंग गया था।
कैसा अदभुत होता है
वो क्षण
जब जीवन की गति
थम जाती है कुछ समय के लिए
और बन जाती है कैमरे में बंद
एक मौन आकृति।
रवि के आने पर
ऊष्मा की औषधि
गटक कर
बर्फ से बूंद
विदा लेती है,
और रह जाती है स्मृति मेरे पास
एक फोटोग्राफ।
तस्वीर की यही कशमकश है
ReplyDeleteतमाम लम्हे लड़ियों सी पिरो जाती है
तमाम आँखों में
पर खुद चुप-चाप नयी नज़रों का ... नए नजरिये का
इन्तेजार करे दबी रहती है
जेहन की गहरायी में ...
कि कोई मिल जाए और दे दे उसे
नए मायने !