चुप्पी
२-३ BHK में बंद हैं
लोग ,
और उनकी आकांक्षाएं भी।
टेलीविज़न में बंद है
ज़िन्दगी,
और तमाम ख्वाहिशें लोगों की।
घुटा हुआ स्वातंत्र्य
ताकता हैं खिड़की से बाहर
देखता है मॉल, प्रेम और स्वाद।
की ये स्वातंत्र्य पनपा है
रंगीन टीवी सेट से ही।
खो गयी है बातचीत,
पैसा बोल रहा है
ब्रांडेड कपड़े खुस-फुसा रहे है ..
जितनी ऊँची इमारतें
उतनी चुप्पी
उतना एकांत
देश की ईंटों से बनती ये इमारतें
इन इमारतों से बनता देश
कैसा होगा?
कैसा हो गया है!
अच्छी अभिव्यक्ति है, पर गलत स्पेलिंग्स पढने में कुछ उलझन पैदा कर रहा है।
ReplyDelete