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Showing posts from 2015

किसी ठौर का मिलना

सिंहपर्णी की झाड़ से उड़ा हुआ एक फोया दिशाहीन। सूक्ष्म , सरल , संवेदी। वायु के वेग से फ़रफ़रता स्वातंत्र्य के नशे में सराबोर। टकराकर किसी पुरातन वृक्ष के स्थायित्व से यकायक ; सकपकाता है, झुंझलाता है, फिर कुछ देर बाद शांत हो पाता है। अनुभव की छाया में किसी बिखरे हुए का बस जाना, टिक जाना उसके अस्तित्व का हनन है, या किसी सम्बल के सहारे निज निर्माण का नैसर्गिक अवसर ? 03.12.15

लेखनी

मन मस्तिष्क के मद को छोड़ कर, निचोड़ कर, कौतुहल, अकुलाहट चेतना में अपनी घोल कर। बेचैनी की गोद में सुसुप्त बालक छटपटा गया हो यकायक। जैसे वेदना में कोई पुकारता हो। कुछ ऐसे ही दूर छोर से बहती, मेरे मन में वही वेदना के तार झंकृत करने, मुझे आंदोलित करने, शांत करने, मुझे तुमसे एक सार करने, मुझसे मिलने आई है तुम्हारी कविता। 28.09.15

FTII Question March

अनुभव (01.07.15) 7 - 8 साल की रही होंगी। पापा ने गाड़ी को रोक कर सामने चलती बरात को देखते हुए कहा " माँ बाउजी कहाँ करते थे की राह चलते कोई संस्कृतिनक कार्यक्रम देखो तो रुक कर उसे देखना चाहिए।" वो तो बस एक बरात थी, आज एक जत्था था, एक रैली थी, हाथ में बड़े-बड़े बैनर और स्लोगन लिए चुप्पी साधे, हम दो लम्बी कतारो में पुणे की सड़को के ट्रैफिक के शोर को चीरते हुए चल रहे थे।  मालूम नहीं बाहर कितना कुछ बदला पर अंदर जैसे कुछ बदल रहा था।  पिछले बीस दिनों में टुकड़ो-टुकड़ो में इस हड़ताल में भागिदार रही हूँ और टुकड़ो-टुकड़ो में अंदर कुछ बदल रहा है। देख रही थी की आज बहुतो ने हमे नहीं देखा। क्या सैकड़ो युवाओं की अनुशासित भीड़ कुछ दिलचस्प नज़ारा नहीं बनाती ? या अब हम नज़ारो में दिलचस्पी रखने वाले नहीं रहे ? या शायद आजकल हमे कुछ भी दिलचस्प नहीं लगता! "सबसे खतरनाक होता है सपनो का मर जाना " पाश की कविता एक पोस्टर पर टंकी, सड़क पर आज कई सपने बनते-बिगड़ते देख रही थी। तभी bus stand के बगल से गुजारी तो वहां खड़े तीन नेत्रहीन छात्रों ने उस पोस्टर पकडे हुए लड़के से पूछा की यह माज़रा क...

On Mother's Day

On Mother's Day 10. 03.15 A photograph on my facebook wall or a film itself What shall describe that exists between you and me! I shall speak while you deny and when you murmur I will be far away. When love sleeps like dry blood in our veins Is there a point in saying Happy Mother's day?

परीक्षा

ओ परीक्षा स्कूलों में तुझसे, पीछा छुड़ाया दूर तुझसे जाकर, मज़ा खूब आया कलाकारी में, कोई दुविधा नहीं है किताबो को रटने का, टंटा नहीं है भ्रम एक और, आज टुटा है यह भी परीक्षा है हर कुछ परीक्षा है यह भी जवाबो से ज़्यादा, जटिल जो समस्या समस्या तो हर क्षण, खड़ी नित नयी है. अजीब हालत है, परीक्षा से पहले वो कितनी बड़ी और भयावह होती है, और निकल जाये तो बस रस्ते का रोड़ा, सिर्फ एक पड़ाव। तैयारी कितनी भी होती थी, कोई एक सवाल तो चकमा देने वाला होता था, जिस पर "out of course" होने के इलज़ाम भी लगाये जाते थे. मगर सच में जीवन का सिलेबस तो अंतहीन है, और किसी जटिल समस्या को देख कर लाचार होने के अलावा उपाय क्या है? बहरहाल, याद नहीं आता की कभी किसी इम्तिहान में क्षत प्रतिशत नम्बरो से पास हुयी हूँ !

A documentation of failure

A documentation of failure of the other, My film. Aspiring to succeed in spite of myself, who is a documentation of failures. (30.04.15)

Knowing

The other my muse.  Myself, a stranger.  (30.04.15)

डर

यह जानते हुए  कि कुछ होना  कुछ भी नहीं,  डर लगता है  न होने से।

सिनेमा की परत में

तुम्हारी फिल्मे देख कर झाँक लेती हूँ अंतर्मन में जो मेरे ही जैसा परेशान और चंचल है। काश की ये परतें मिट जाती की बात हो जाती मन की मन से, और बाँट लेते सुख-दुःख भी जो सिनेमा की परत में लिपटे आलिंगन को  लालायित  है।