लेखनी
मन मस्तिष्क के मद को
छोड़ कर, निचोड़ कर,
कौतुहल, अकुलाहट
चेतना में अपनी घोल कर।
बेचैनी की गोद में
सुसुप्त बालक
छटपटा गया हो यकायक।
जैसे वेदना में कोई
पुकारता हो।
कुछ ऐसे ही
दूर छोर से बहती,
मेरे मन में वही वेदना के तार
झंकृत करने,
मुझे आंदोलित करने,
शांत करने,
मुझे तुमसे एक सार करने,
मुझसे मिलने आई है
तुम्हारी कविता।
28.09.15
छोड़ कर, निचोड़ कर,
कौतुहल, अकुलाहट
चेतना में अपनी घोल कर।
बेचैनी की गोद में
सुसुप्त बालक
छटपटा गया हो यकायक।
जैसे वेदना में कोई
पुकारता हो।
कुछ ऐसे ही
दूर छोर से बहती,
मेरे मन में वही वेदना के तार
झंकृत करने,
मुझे आंदोलित करने,
शांत करने,
मुझे तुमसे एक सार करने,
मुझसे मिलने आई है
तुम्हारी कविता।
28.09.15
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