सिनेमा की परत में
तुम्हारी फिल्मे देख कर
झाँक लेती हूँ अंतर्मन में
जो मेरे ही जैसा
परेशान और चंचल है।
काश की ये परतें मिट जाती
की बात हो जाती मन की मन से,
और बाँट लेते सुख-दुःख भी
जो सिनेमा की परत में लिपटे
आलिंगन को लालायित है।
झाँक लेती हूँ अंतर्मन में
जो मेरे ही जैसा
परेशान और चंचल है।
काश की ये परतें मिट जाती
की बात हो जाती मन की मन से,
और बाँट लेते सुख-दुःख भी
जो सिनेमा की परत में लिपटे
आलिंगन को लालायित है।
बहुत खूब, किसी के मन को समझना तुमको खूब आता है, तुम्हारी कविता दिल को छू जाती है। बहुत अच्छा लिखती हो।
ReplyDeleteइंतजार रहता है की अब क्या बिना होटों के कहने वाली हो। मुश्किल होता है सुन्दर सूरत के साथ सुन्दर सीरत भी हो, पर तुम्हारे पास दोनो है।