बबूल
मिट्टी के टीलों पर चढ़ते वक़्त
कई बार
तीखे बबूल के कांटे
चुभे हैं
चप्पलों के आर पार
पैरों के तले से बात करने पहुंचे हैं।
"मुआ यह कौन आया
बिन बुलाये
मेरे घर के निचले दरवाज़े से घुसने वाला
बड़ा ज़ालिम, चुभीला
निकाल फेंका उसे
हाय, दर्द!
कांटे ने काट लिया!"
आज सालों बाद सीने में दर्द उभरा।
मैंने भीतर झाँका तो
कितने कांटे
बैठे थे अंदर!
तीखे बबूल के कांटे
चुभे हैं
चप्पलों के आर पार
पैरों के तले से बात करने पहुंचे हैं।
"मुआ यह कौन आया
बिन बुलाये
मेरे घर के निचले दरवाज़े से घुसने वाला
बड़ा ज़ालिम, चुभीला
निकाल फेंका उसे
हाय, दर्द!
कांटे ने काट लिया!"
आज सालों बाद सीने में दर्द उभरा।
मैंने भीतर झाँका तो
कितने कांटे
बैठे थे अंदर!
इतने कि अब
मैं खुद
एक बबूल का पेड़ हूँ।
Comments
Post a Comment