फेयरी टेल

कुछ दिनों से समीर के घर पर काम करने जा रही थी। हम साथ एक फिल्म पर काम कर रहे थे, मुम्बई में उस समय कोई ठिकाना नहीं था तो उसी के घर पर बैठ कर बातचीत और लिखावट का काम जारी था।  समीर अपनी साथिन साशा के साथ रहता था, उन्हें साथ देख कर काफ़ी अच्छा लगता।क्या तरतीब से रहते थे दोनों ! किसी घर की सुंदरता, उसकी भव्यता से ज़्यादा बारीकियों में होती है , इसलिए जब बाथरूम में गुदाई किया हुआ टॉयलेट पेपर देखा तो देखते ही घर की व्यवस्था पर न्योछावर हो गयी। धन संपन्न होना, और एक सुरुचि पूर्ण जीवन जीने में काफ़ी फ़ासला है। समीर और साशा ने इस भेद को पूरी तरह नगण्य कर एक ऐसी सुन्दर दुनिया उस 2 BHK में रची थी।

सिर्फ सामान और साज सज्जा नहीं, उनकी बातचीत में भी विवेक का अतिरेक था।  अधिकतर उनकी मातृभाषा, तमिल में एक दूसरे से सरलता और तरलता से बात करते थे।  एरोमा से भरी उस हवा में आसानी से शब्द बहते हुए कुछ खेल करते थे। शब्दों से दोनों का ही गहरा प्रेम था। वो उनके घर में रखीं सैकड़ों किताबो को देखकर अंदाज़ा लग गया था कि शब्द उन्हें अपने लगते थे, उन्हें उनसे जूझना न होता था, लड़ना न होता था।  मुझसे दोनों ही अधिकतर अंग्रेजी में बातचीत करते थे, साशा की प्रभावित कर देने वाली बात यह थी कि वो बड़े ही सहजता से आपसे बात करते करते आपकी किसी बुरी धारणा को आपके समक्ष लाकर पेश करती और उसके साथ ही उसी से विपरीत या बेहतर परिदृश्य, आपके सामने रख देती। मगर फिर भी किसी चतुर और वाकपटु से उसकी तुलना करना सही नहीं होगा।वो बेहद सरल और सभ्य थी और  काफी समझदार भी।  

समीर काम में अच्छा था ही, मगर उतना ही बढ़िया कुक भी था। अधिकतर लौटने में देर होती तो कभी सांभर राइस, कभी स्वादिष्ट बैंगन का भरता खाने को मिलता। काम के बीच में थोड़ा विराम लेता और खाने का इंतज़ाम कर दिया करता। कभी कभी साशा अपने काम से बहार रहती तो हम दोनों ही साथ खाना खा कर फिर काम में लग जाते। ऐसे ही एक दिन खाते वक़्त हम उसके घर के बारे में बात करने लगे।  मैं समीर और साशा से कुछ दिन पहले ही मिली थी तो इतना कुछ नहीं जानती थी, अभी तक ज़्यादातर हमारी बातें काम तक सीमित थी। समीर ने तब बताया की वो पिछले कुछ महीनों से घर नहीं गया था। कहा, थोड़ा मुश्किल है।
"व्हाई" मैंने पूछा
वो मेरे शादी के निर्णय से खुश नहीं है। साशा और मेरे बीच उम्र का अंतर बहुत है।
पर ऐसे लगता तो बिलकुल नहीं।"शी लुक्स यंग" मैंने अपने मन में बनी फेयरी टेल का बचाव करते हुए कहा। अभी तक साशा और समीर मेरे मन में "परफेक्ट कपल" की श्रेणी में स्थान बना चुके थे।
हाँ, मगर वो डिवोर्सी भी है और यह बात मेरे माता पिता को बिलकुल नहीं सुहाती।
मेरे पिता ने तो मुझसे बात करना बिलकुल बंद कर रखा है।

मेरे घर पर भी कुछ ऐसा ही है, मेरे लिए भी इंटर कास्ट मैरिज करना मुश्किल होगा।  बात को मैंने थोड़ा हल्का करने कि कोशिश की।कभी कभी दूसरे का दुःख भी मलहम बन जाता है, यही सोच कर मैंने अपनी कहानी बीच में घुसाने की कोशिश करी।

नहीं, हमारा धर्म अलग है मगर माँ ने साफ़ कहा है कि यह विवाद धर्म को लेकर बिलकुल है ही नहीं। हमारी उम्र में अन्तर भी तो खुब हैं, साशा मुझसे 9 साल बड़ी है। मैं कुछ ही दिन पहले क्रिसमस पर साशा के घर गया था, वहां सब मुझे परिवार का सदस्य ही मानते हैं, बस यही बात उन्हें भी खटकती है कि साशा को मेरे परिवार का साथ नहीं मिलेगा। साशा अपनी पिछली शादी में अपनी सास के बहुत करीब थी, वो तो आज भी फ़ोन पर बातें करते हैं।  और यहाँ मेरे घरवाले उससे मिलना भी नहीं चाहते।

हमारा खाना खत्म हो चूका था।
समीर सिगरेट जलाने के लिए बालकनी की ओर चला गया।  मै किचन में प्लेट्स रख ही रही थी की डोर बेल बजी।
साशा अपनी मीटिंग से लौट आयी थी।

दरवाज़ा खोला तो वहां साशा को पाया। साशा छोटी कद की, सांवली लड़की थी। छोटे, घुंघराले बाल - कुछ सफैद हो रहे थे, उम्र उसकी आँखों में दिख रही थी।वो घर में प्रवेश करने को आतुर थी, पर मैं उसे वहां खड़ी परखे जा रही थी। समीर मेरे पीछे खड़ा उससे मिलने का इंतज़ार कर रहा था।

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