प्रेम गीत
हिरणी की आँखों में
व्यथा अपार।
मधुमक्खी के छज्जे से
टपकता शहद
छज्जों के छोर से लटकती; बूँद
अपने बोझ से बनती बिगड़ती।
बनती बिगड़ती
लहरें
टकराती सागर किनारे चट्टानों से
कुछ बिखर जाती
कुछ, कुछ कसमसा कर
सिमट जाती
और लौट आती घर
भरने गगरिया
सिंधु हृदय की।
मृग नयनी
तुम सुन्दर
सुन्दरतम
बहती नयनों से
अश्रुधारा!
व्यथा अपार।
मधुमक्खी के छज्जे से
टपकता शहद
छज्जों के छोर से लटकती; बूँद
अपने बोझ से बनती बिगड़ती।
बनती बिगड़ती
लहरें
टकराती सागर किनारे चट्टानों से
कुछ बिखर जाती
कुछ, कुछ कसमसा कर
सिमट जाती
और लौट आती घर
भरने गगरिया
सिंधु हृदय की।
मृग नयनी
तुम सुन्दर
सुन्दरतम
बहती नयनों से
अश्रुधारा!
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