सिनेमा की परत में
तुम्हारी फिल्मे देख कर झाँक लेती हूँ अंतर्मन में जो मेरे ही जैसा परेशान और चंचल है। काश की ये परतें मिट जाती की बात हो जाती मन की मन से, और बाँट लेते सुख-दुःख भी जो सिनेमा की परत में लिपटे आलिंगन को लालायित है।
जैसे कोई गेस्ट हाउस