प्रतिबिम्ब


तुम सब  में मुझे
मैं दिखती हूँ
थोड़ी थोड़ी जैसे
मेरी ही छवि
आधी-अधूरी।
मित्र या शत्रु नहीं
तुम हो मेरे ही
प्रतिबिम्ब।
प्रेम रहा सब से
और बैर भी
जैसे अंतर्द्वंद
बाहर छलक पड़ा हो
और बाह्यमुखि
ये आँखें
आज भीतर झाँक रहीं हों।

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